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: Social Life (1010)
Articles [Social Life]
This is my first article in this site today and I am so happy today that I cannot express it in simple words. But first of all I am going to thank God for whom i am living in this world and second to Boddunan just because it gave me an opportunity...
इस जगतीकरण के युग में हमारी जीवनशैली बदल रही है | व्यस्त जीवन से थोडा आराम महसूस करने के लिए आज पर्यटन किया जा रहा है | पहले सिर्फ देश भर के पर्यटन को ही महत्व था , पर आज के युगमे विदेशी पर्यटन को भी गति मिल रही है | हमारे केंद्र तथा राज्य शासन ने...
This proverb emphasizes the importance of little things and the danger of neglecting the insignificant beginnings of evil. It means that it we promptly mend a small tear in our clothes when we first notice it, we shall prevent the tear from...
मुड़ो नहीं बढ़े चलो
मुड़ो नहीं बढ़े चलो
थको नहीं चढ़े चलो
नदी घाटी दुर्गम पहाड़
सुनो सिंह की दहाड़ |
मंजिल आवाज दे रही
सुरों को साज दे रही
फिर क्यों ?निडर तू डर रहा
लम्बी उसांस भर रहा ||
आंधी तूफ़ान हो बवंडर
पथ में आये...
असली भारत का कड़वा सच शर्मनाक,बेहद घिनौना है जिसका जितना ऊँचा कद है उतना दिल से बौना है | देख,देश का हाल बुरा है हरमोड़ पर खड़ा दुश्शासन चीर-हरण करने को आतुर पर मौन खड़ा प्रशाशन | न्याय आँख पर पट्टी बाँधे ढूढे कातिल का चेहरा शातिर संसद पथ पर...
झरना :अनजाना पथिक
मैं हूँ अनजाना पथिक
ढूंढ़ता हूँ अपनी मंजिल को
धैर्य का आलंबन करके
कल-कल निनाद करते-करते ||
उठ रही तरंग जो मेरे दिल से
साहस के झंकृत गीतों में
लक्ष्य-भेद तक रुके कदम नहीं
शीतातप के सहते -सहते ||
चाहे...
कुछ नहीं पहचान रह गया है आदमी काइस कदर ईमान खो गया है आदमी काखुद नाम काम घर को बेचता है सरे-आम बस दो टके का दाम रह गया आदमी का ||मैला नहीं लिबास हम तो मैले हो गए काफिलों के बीच में भी अकेले हो गएसत्य,अहिंसा,न्याय-सेवा के व्रती को जान न पाया तो...
LEISURE TIME:
All people have plenty of work to complete on a day.All our daily routine chores at home,office make us lethargic.But every week has a weekend, every month has an holiday and every day has a day break.After working all day long,...
हाय रे!!महंगाई की मार
कोई सुन ले करूण पुकार
सौ रूपये किलो था दाल
उसके बिना जनता बेहाल
लगता है दाल में काला है
सरकार के मुँह में ताला है
राजनीति कुदरत का खेल
आसमान पर चढ़ा है...
Hijda-a single word that denounces a whole segment of our brethren into the category of “outcasts”. I’m sure that no one here is unfamiliar with the term “Hijda”. We have used it quite a lot of times…sometimes laced with scorn...may be even...
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