असली भारत का कड़वा सच
शर्मनाक,बेहद घिनौना है
जिसका जितना ऊँचा कद है
उतना दिल से बौना है |
देख,देश का हाल बुरा है
हरमोड़ पर खड़ा दुश्शासन
चीर-हरण करने को आतुर
पर मौन खड़ा प्रशाशन |
न्याय आँख पर पट्टी बाँधे
ढूढे कातिल का चेहरा
शातिर संसद पथ पर घूमे
बांधे जीत-जश्न का सेहरा |
बेलगाम ‘छुटभैये’ सारे
घूम रहे बाज़ारों में
क़ानून बस कड़ा बना है
बेबस और लाचारों में |
अंधायुग में दफ्तर-अफसर
लक्ष्मीप्रसाद को पहचाने
काम उसी के होते पल में
जो डाले कुछ मोटे दाने |
जो हर क़ानून को तार-तार
कर जोड़े अपना टांका
लोकतंत्र का ‘प्रबुद्ध नागरिक’
सबका नेता बांका |
धर्मं-ध्वजा के पंडालों में
पलता गोरख-धंधा
समता का रेवड़ी बाँट रहा
धृत-राष्ट्र जैसा अंधा |
संस्कार,शास्त्र-पुराण की बातें
लगती अब बे-मानी
यहीं है ‘असली भारत’ की
दुखदायी अनकही कहानी ||
-ऋषि कान्त उपाध्याय