युवाशक्ति
उठो सरस्वती के वरदपुत्र ,करो क्रांति जय- उदघोष
अभिशप्त,अवसाद-ग्रसित समाज में, जन, जन-जागृति जोश||
शक्तिपुंज युवापीढ़ी की, चमक धूमिल क्यों हुईआज ?
जिसके बलवैभव पर सबको ,होती रही सदा से नाज़
फिर क्यों कुंठा का कलुषभाव ? क्षण - क्षण मुखरित होता आक्रोश ||
नई दिशा-नई श्वासों से, संचार सृष्टि में करने वाले
अपने पौरुष प्रखर-ज्वाल से ,लक्ष्य -भेद करने वाले
आगे बढ़ो चुनो कंटकपथ ,तभी खिलेगा आनंद -कोश ||
अफ़सोस !हमें,क्षणिक बाधा ने, तेरे ज्वार को बाँध दिया
जो कमर कसे खड़े रहे ,उसने लक्ष्य को साध लिया
सफलता उसके चरण चूमती ,जो करता नहीं कर्म-संतोष ||
जीवन मलय- पवन जैसा हो, शुद्ध ,शांत गतिमान सदा
धर्म-कर्म है सुमन खिले ,उगता रहता दिनमान सदा
खुद जलकर देता प्रकाश, ज्यों विषपायी आशुतोष ||
-ऋषि कान्त उपाध्याय