भारत का सम्मान है संस्कृत
अतिथियों का मान है संस्कृत
प्रभु का पावन प्रसाद है संस्कृत
अतीत का अवसाद है संस्कृत
सुर-संगम स्वर-संधान है संस्कृत
विधि का वृहद् विधान है संस्कृत
ज्ञान-विज्ञान की खान है संस्कृत
रामायण-महाभारत की शान है संस्कृत
गीता में गुरु ज्ञान है संस्कृत
व्यवहार-पुराण-आख्यान है संस्कृत
वेद-स्मृति सामगान है संस्कृत
आत्मज्योंति का ध्यान है संस्कृत
आशाओं का प्रतीक है संस्कृत
शक्ति का प्रज्वलित दीप है संस्कृत
जीवन का गूढ़ विचार है संस्कृत
मानवता का प्रसार है संस्कृत
सकल-सृष्टि का आधार है संस्कृत
दिशा दशा की द्वार है संस्कृत
दया-धर्म का संयोग है संस्कृत
अभिनव शोध प्रयोग है संस्कृत
सदगुण सुगंध की धाम है संस्कृत
सूक्ति सुधा-रस प्रकाम है संस्कृत
भाषा भावों का सन्निवेश है संस्कृत
प्रतिभा प्रकृति प्रवेश है संस्कृत
वाल्मिकी भास उद्भास है संस्कृत
माघ-दास भारवि प्रकाश है संस्कृत
सुन्दर शब्दों का विनियोग है संस्कृत
छंद-अलंकर रस भोग है संस्कृत
सरस-ललित कंठहार है संस्कृत
सुरसरि का अजस्रधार है संस्कृत
आश्रम पुरुषार्थ आचार है संस्कृत
प्राण-प्रणव ओंकार है संस्कृत ||
- ऋषि कान्त उपाध्याय