मिस्टर पूँछ
मक्खन-युग में मि०पूँछ की पूछ बड़ी है
विशेष प्रजाति में इनकी चाहत हर-घड़ी है
इन्हें देखकर 'मुन्नी बदनाम हुई'की याद आती है
जो अपनी कमसीन अदा से सबको लुभाती है
जब विशेष वर्ग के लोग चलते है
तो मि०पूँछ फालतू हिलते है,
लेकिन जीवन में अक्सर मिलते है
मि०पूँछ मेरे यहाँ का बेशर्मा पौधा है
जो हर मौसम में हरा है
मैं मिस्टर पूँछ से बहुत पीड़ित हूँ
उनकी दशा- देख अति अचंभित हू
जनाब, जब किसी को कमजोर पाते हैं
तो मूंछ की तरह शान से खड़े हो जाते हैं
और बेचारे पर अपना धौंस दिखाते हैं
जब अधिकारी या सिकंदर सामने आते हैं
तो चूहे की तरह बिल में घुसकर अपनी धड़कन नापते हैं
यदि साहब ने कुछ रौब दिखाते हुए बुलाया
दांत बाहर निकाले ,अन्दर पूंछ डाले हुए आया
लडखडाती आवाज़ से ,मक्खन-मिश्रित जबान से
साहब को चाट रहा है या साहब का चाट रहा है
मानो पूर्व जनम का भाट रहा है
मैंने देखा ,मि० पूँछ धीरे-धीरे ऊपर उठ गए
किन्तु साहब के खांसते ही फिर अन्दर घुस गए
मैंने विचार मंथन किया ..............................
अच्छा है, मि० पूँछ मानव शरीर में सामने नहीं दिखते
नहीं डींग तो हांकने वाले ,शेखी बघारने वाले कैसे रहते
पूँछ के उतार-चढ़ाव को देखकर मन व्यथित हुआ
क्योंकि उसने जीने के हक़ को गिरवी रख दिया
अंत में मैंने किया एक प्रश्न
मि० पूँछ अपना अनुभव दो कुछ
उसने यहीं कहा कि मेरे जीवन से मरना अच्छा है
स्वाभिमान भरा जीवन ही सच्चा है
पूँछ बेअसर बेकाम होती है
कुत्ते की पूँछ बदनाम होती है
ऋषि कान्त उपाध्याय