Open Means Open Means

वे मेरे दोस्त हैं और तीनो तेइसवीं मंजिल पर रहते हैं.सरदार गुरिंदर सिंह चड्ढा ,साहिल सप्रू और आर्मी से अवकाश प्राप्त मेजर विजय शर्मा.गुरिंदर और सप्रू बिजनेस मैन हैं. गुरिंदर को कविताएँ लिखने और सुनाने का शौक है. मेजर शर्मा रिटायर्मेंट के बाद ज़िंदगी के मज़े ले रहें हैं. यह मुंबई का एक इलाका है तथा यहाँ ऊंचे मकानों की भरमार है. मै जिस मकान की बात कर रहा हूँ यह भी सत्ताईस मंजिलों की है .पर मेरी पहुँच उतनी ऊँची नहीं है. मेरे दोस्तों ने मुझसे गोपनीयता का वादा लिया है इसलिए मैंने उनके नाम बदल दिए हैं और इलाका भी नहीं बता रहा हूँ.आपको यह भी बता दूं की यह कोई कहानी नहीं है.सिर्फ एक आर्टिकल लिखने के लिए ही मै वहाँ जाने वाला हूँ.मै यह जानना चाहता हूँ की आखिर तेइसवीं मंजिल की ज़िंदगी होती कैसी है. आज वो तीनो नीचे एक होटल में चाय पी रहे थे ,मैंने उनको वहीं जा पकड़ा. जब मैंने उनसे साक्षात्कार की बात कही तो उन्हें यह बात पसंद नहीं आयी.मेरी बात पर ज़रा उनके नखरे तो देखिये.

मै: धन्य भाग्य मेरे,आज इन्द्रपुरी के सभी देवता धरती पर कैसे?अब तो लगता है भवसागर पार हो जाएगा.गुरिंदर अब बता मेरी इंटरव्यू वाली बात का क्या हुआ?
गुरिंदर: ओये पांड्या, इंटरव्यू के लिए तुझे हम ही मिले .दुनिया की झिक-झिक से बचने के लिए ही तो हम इतने ऊपर हवा में टंगे रहते हैं.अखबार वालों को मसाला मिला नहीं कि वहाँ भी धमकने शुरू हो जायेंगे.
मै: तू क्या दुनिया का हिस्सा नहीं है?क्या तुम्हारी सब्जियां और फल ज़मीन पर नहीं उगते?
सप्रू: अरे पांडे जी शांत हो जाओ,इसका मतलब ये था कि तुम हमारी प्राइवेसी बनाये रखना .तुम तो जानते ही हो कि लोग कैसे आजकल इन्फोर्मेशन का फायदा उठाते हैं .इसलिए हमलोग तेइसवीं मंजिल पर हैं लेकिन फेसबुक पर नहीं हैं.
मै: सप्रू , तुम लोग जहां रहते हो वहाँ तो कोई परिंदा भी ....मेरा मतलब है वहाँ तो सिर्फ परिंदे ही पर मार सकते हैं.

मेजर: पांडे जी आप इंटरव्यू बेशक लीजिये पर एक शर्त है.आपको इंटरव्यू लेने लिफ्ट से नहीं सीढ़ियों से आना होगा.
मै: मेजर तुम आर्मी से रिटायर हो गए पर युद्ध की रणनीतियां बनाने से बाज़ नहीं आये.
मेजर(जोर से हँसते हुए):अरे पांडे यू आर मोस्ट वेलकम ,कल शाम को आ जइयो.

 

तो पाठकों आपने देखा कि एक रिपोर्टर की ज़िंदगी भी इतनी आसान नहीं होती.कैसे-कैसे सवालों और ज़वाबों के बाद मेरे दोस्त साक्षात्कार के लिए राजी हुए ये तो सिर्फ उसका एक ट्रेलर था. पर मै भी ठहरा खबरी आदमी, पीछे हटना तो हमने सीखा ही नहीं.तो ऐसे मै जा पहुंचा मंगलवार की शाम तेइसवीं मंजिल पर.पहले से ही तयशुदा जगह सप्रू की बालकनी पर सब लोग इकठ्ठा हुए.सबसे अंत में मेजर साब आए .


मेजर: अरे वाह , खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे चार दोस्त.
सप्रू: नहीं मेजर ऐसे कहो,"जहाँ चार यार मिल जाएँ वहीं रात हो गुलजार......."
मै(सप्रू की बात बीच में ही काटते हुए): मै रात गुलजार करने नहीं आया हूँ, मुझे तेइसवीं मंजिल की ज़िंदगी के बारे में एक आर्टिकल लिखना है, इसलिए मै तुम लोगो का इन्टर्व्यू लेने आया हूँ ,....नाऊ इज दैट क्लिअर ?
गुरिंदर: हाँ पाण्डे मालूम है कि तू यारों का हाल-चाल पूछने तो आयेगा नहीं, इसलिए चल शुरू हो जा फटाफट ,पूछ क्या पूछना है. (धीरे-धीरे गुनगुनाता है )

खता हमारी हमने सोचा दुआ सलाम को आये हैं
पर वो बेरहम तो सिर्फ अपने काम को आये हैं

 

(पीछे नौकर की ओर मुड़ कर देखते हुए) ओये खोत्तया तूने कभी इंसान देखे नहीं जो ऐसे आँखे फाड़ कर देख रहा है? ये कोई मंगल ग्रह से नहीं आये हैं .जा चाय नाश्ता ले कर आ.देख नहीं रहा पाण्डे जी, द ग्रेट रिपोर्टर हमारे गरीबखाने पर पधारे हैं?

मै: और बता गुरिंदर क्या हाल हैं? नीचे गर्मी में दिल्ली के पसीने छूट रहे हैं और तुम तीनो स्वर्ग लोक के मज़े ले रहे हो?
गुरिंदर: अरे यार जीते जी स्वर्गवासी मत बना. स्वर्ग की तो सीढियां होती हैं. यहाँ लिफ्ट से आना पड़ता है. स्वर्ग में तो पुण्यात्मा रहते हैं. यहाँ मेजर और सप्रू जैसे घोर पापी रहते हैं....(ठठा कर हंसता है.). वैसे ये बात अलग है कि अपने फ्लैट का नाम मैंने स्वर्ग विला रखा है.


मै: हाँ तो तेइसवीं मंजिल के पंछियों , मेरा पहला सवाल यह है कि तुमने यहाँ घोसला लेने की........मेरा मतलब है फ्लैट लेने की बात सोची कैसे?

गुरिंदर: यार मै तो पहले से ही उंचाई-पसंद किस्म का बन्दा हूँ .तू तो जानता ही है क़ी मैंने सर्विस क्यों छोडी थी, किसी की डांट-फटकार तो मै सुनने से रहा वो. तूने सुना नहीं है,"ऊँचे लोग ऊँची पसंद"

मेजर: तुमने फील किया होगा पांडे यहाँ हवा कितनी साफ़ है,इसलियी हमारे फेफड़े और दिल दोनों साफ़ रहते हैं,तुम नीचे रहने वालों के दिल तो काले होते हैं.मेरी मानो तो यहाँ जी भर के साँसे ले लो ये हवा बार-बार नसीब नहीं होती (सारे जोर से हँसते हैं).
सप्रू: हम लोगों के आस-पास कीड़े-मकोड़े , मच्छर -मक्खी इत्यादि भी नहीं फटकते.डेंगू ,मलेरिया,चिकनगुनिया ये सभी नीचे फैलते हैं पर यहाँ ऊपर कुछ भी नहीं.फिर चोरियां-डकैतियां, अपहरण, घोटाले, हवाले ये सब कुछ नीचे चलते हैं, यहाँ नहीं चलते
मै:वो सब तो मै समझ गया पर होटल में चाय पीने तुम लोगों को नीचे ही जाना पड़ता है,क्यों?

मेजर: अपने भक्तों को दर्शन देने भगवान को मर्त्य-लोक में कभी-कभी जाना ही पड़ता है .(सप्रू ठठा कर हँसता है.)

गुरिंदर: जो भी बोलो यार पांडे ,पर ये बात तो ज़रूर है की बाबू राम के ढाबे की चाय में जो मज़ा है उसके लिए तेईस तो क्या मै सौ मंज़िलों से भी उतर लूं.
मै: अच्छा चलो अब ये बताओ की क्या तुम्हारी श्री मतियों को भी ये उंचाई पसंद है? देखो सच-सच बताना.
सप्रू(मेरे सर पर हाथ रखते हुए): तुम्हारे सर की कसम पांडे ,उन्हें भी पसंद है.(मेजर और गुरिंदर ठहाका लगाते हैं.)

मेजर:अब ऐसा है पांडे ऊँचाई के बारे में तो पता नहीं पर इतनी मंजिलों वाली बिल्डिंग उन्हें ज़रूर पसंद है

क्या है कि  किसी ना किसी फ्लैट में उनकी किटी पार्टियां चलती ही रहती हैं.

 

मै: पर मेजर साब आप कभी उन्हें घुमाने भी ले जा पाते हो? नीचे उतरने का तो मन ही नहीं करता होगा?

मेजर: अब देखो यार जहां इतने फायदे हैं वहाँ थोड़ी प्रॉब्लम  झेलनी भी  पड़े तो क्या बात है?जैसे कभी-कभी शंकर-पार्वती जी कैलाश पर्वत से उतर कर पृथ्वी भ्रमण को जाते हैं उसी तरह हम भी कभी-कभी तुम्हारे जैसे भक्तों को दर्शन देने नीचे उतरते हैं.

सप्रू(बीच में टपकते हुए): अच्छा पण्डे जी हमारी उंचाई से कहीं आपको कोई जलन तो नहीं हो रही?

गुरिंदर: जो जलते हैं उन्हें जलने दो,

हम तो यूँ ही पिए जाएँगे .

(एक ग्लास में जाम उड़ेलते हुए)

दोस्तों के साथ शामें गुलज़ार हों,

हम तो यूँ ही जिए जाएँगे.

मै: अच्छा यार सप्रू ये बताओ तुम सब यहाँ रहते हुए कभी ऊबते नहीं हो? जब मन तब नीचे नहीं उतर सकते, गुरिंदर अपना फेवरिट खेल वोलीबाल नहीं खेल सकता, मेजर घुड़सवारी नहीं कर सकते, और तैरना तो तुम्हारा प्रिय एक्सरसाइज है वो भी तो तुम नहीं कर सकते?
सप्रू: पांडे ये बताओ की तुम कौन सा काम करना सबसे ज्यादा पसंद करते हो और तुम्हारे मनोरंजन के साधन क्या-क्या हैं? तुम बताओ फिर मै जवाब दूंगा.
मै; अच्छा ये बात है? तो सुनो. पत्रकार बनना मेरा ख्वाब था, वो मै हूँ. नयी-नयी पिक्चरें देखना मेरा शौक है, दोस्तों के साथ गप्पे हांकना मुझे अच्छा लगता है, खूब सारी किताबें पढता रहता हूँ और......भी न जाने क्या क्या...हाँ एक विदेश भ्रमण का सपना पूरा नहीं हुआ. मन में था कि नयी-नयी जगहें घूमूँगा पर वो अभी पूरा नहीं हुआ है. और हाँ कविताएँ भी लिखता हूँ....
गुरिंदर: बिलकुल यही बात है दोस्त...अर्ज़ किया है...
सप्रू , मेजर और मै (एक साथ): इरशाद
गुरिंदर: ज़िंदगी गुज़ार दी ख्वाहिशों को पूरी करने में
पर ज़िंदगी जीने क़ी ख्वाहिश पूरी नहीं होती
जो जिए होते जिंदादिली से दो पल तो
आज ये ज़िंदगी अधूरी नहीं होती.

सभी (एक साथ ): वाह !वाह! क्या बात है...क्या बात है..
सप्रू: तो पाण्डे उम्मीद है तुझे तेरा उत्तर मिल गया होगा.
मै: हाँ बिलकुल, बिलकुल. तो तेईसवीं मंजिल के पंछियों मेरा और तुम्हारा आज का साथ इतना ही था , अब कृपया मुझे आज्ञां दें ...
गुरिंदर: अरे यारां दिल मत तोड़ ...इतना तो मज़ा आ रहा है...तू हमे छोड़ कर कहाँ जा रहा है......अरे धत यार ...दिल रोता भी साला कविता में ही है.
मेजर: हाँ इसी बात पर याद आया पांडे जी, अक्सर गुरिंदर हमे एक कविता सुनाता है. हम क्यों नीचे की दुनिया छोड़ कर ऊपर चले आये ये जानने के लिए सुनिए ...पेश है गुरिंदर सिंह की कविता...

गुरिंदर:

जब से लोग हुए संगदिल
और दुनिया न आयी रास
हम छोड़ आये तुम्हे नीचे
ढूँढने थोड़ा सा आकाश.

ज़हर हो चली थी हवा
एक घुटन सी होती थी
हम जिस फिजां के पंछी थे
न वो मयस्सर होने पे
एक चुभन सी होती थी.

रुत बदली बर्ताव बदल गए
पत्थर के थे वो ईमान बदल गए
चेहरे बदले, नीयत बदली
और न जाने कैसे इंसान बदल गए.

पर हम आशा के प्रहरी
नहीं रह सकते थे हताश
इसलिए छोड़ आये तुम्हे नीचे
ढूँढने थोड़ा सा आकाश.

 

और भी है ...और भी है...पर करेंट चला गया है, जनरेटर भी खराब है, सारी सीढियां आप को चल चल कर उतरनी हैं...सॉरी पांडे(गाते हुए)...सॉरी...सॉरी ..
(मै धम्म से सर पकड़ कर वहीं बैठ जाता हूँ.)

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