''ब्रम्ह्चर्यम परम बलम'' अर्थात ब्रम्हचर्य ही सर्व शक्तियोंका स्त्रोत है | भारतीय पुरानोंमें पवनसुत हनुमान ,भीष्म पितामह तथा आधुनिक यूग में स्वामी विवेकानंद जैसे हस्तियोंने ब्रम्हचर्य से ही परम यश प्राप्त किया | स्वामी विवेकानन्द जी ने अपनी राजयोग नामक पुस्तक में लिखा है की बिना ब्रम्हचर्य पालन के कोई भी मनुष्य योगी नहीं बन सकता | गीता में भी भगवन ने अर्जुन से कहा काम महा शत्रु है ,वो अंत में दुःख देनेवाला है |
ब्रम्हचर्य की धारणा समस्त मानव जाती के लिए कल्याणकारी है | परन्तु विद्यार्थी जीवन के लिए अधिक लाभदायक है | शास्त्रों में वर्णन है कम से कम पच्चीस वर्ष तक ब्रम्हचर्य का पालन करना आवश्यक है | यही ऐसी शक्ति है जिसके कारन स्मृति शक्ति का निर्माण होता है | विद्यर्थी जीवन संपूर्ण जीवन का सबसे अनमोल समय होता है | इसी समय के आधार से हमारे जीवन के आगामी समय का निर्माण होता है |
आज सभी जाती ,धर्मं देश के लोगोंको इस विषय पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है क्योंकि ब्रम्हचर्य का अभाव ही समस्याओं की शुरुवात है और ब्रम्हचर्य का पालन ही समस्त समस्याओं का अंत है | ब्रम्हचर्य मानव का आंतरिक सौंदर्य है जिससे उसे तेज ,उत्साह कार्यक्षमता की वृद्धी आदि विशेषताओं की प्राप्ति होती है | इसलिए हर मनुष्य को चाहिए की वह अपने कल्यान के लिए सोचे और ब्रम्हचर्य का पालन करके संसार को बदलने का सहयोग देकर पुण्य का भागी बने |