Open Means Open Means
भारतीय समाज की सबसे बडी विशेषता उसकी अनेकता में एकता की भावना है.  यहाँ विभिन्नप्रकार वर्गों के लोग निवास करते है.  इनमे विभिन्न प्रकार की परंपराएँ प्रचलित है.  वैदिक धर्म यहाँ के अधिकांश भाग का धर्म है.  जो विदेशी आये वे इस समाज में मिलते चले गए.  कुछ हद तक उन्होंने अपनी मौलिकता भी बनाये रखी.  ऐसे बहुविधि समाज में स्त्रियों का अपना विशेष स्थान रहा है.

शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पत्नी पुरुष का आधा भाग है.  वह एक श्रेष्ट मित्र भी है.  यह भी कहा जाता है कि जहाँ नारी कि पूजा होती है वहीँ देवता रमण करते है.  प्राचीन युग में नारी हर प्रकार से सम्मानित थी.  पर आज उसकी स्थिति बिलकुल भिन्न है.  उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों कि दशा ठीक नहीं थी.  बाल-विवाह प्रचलित हो गया था.  वैवाहिक स्वतंत्रता समाप्त हो चुकी थी.  बहु-विवाह प्रथा झोरों पर थी.  वैदिक कालीन नारी जहाँ पूजनीय थी, वाही उत्तर वैदिक काल में नारी नियमो के बंधन में जकड चुकी थी.  बौद्धकाल सामजिक दृष्टी से और अधिक गिर गया था.  वह भोग की वस्तु मानी जाती थी.  बौद्द कालांतर नारी की स्थिति शोचनीय रही.

मुसलमानों के शासनकाल में वह बिलकुल अबला बन गयी थी.  उसके सारे अधिकार छीन लिए गए थे.  उसे घर के चारदीवारी के भीतर डाल दिया गया.  संत कवियों ने नारी को माया, ठगिनी, अवगुणों की खान कहकर उसकी रही सही मान्यता को ठेस पहुंचाया.  रीतिकाल में आकर नारी निवारण हो गयी.  इस प्रकार नारी की सामजिक दशा धीरे-धीरे गिरती गयी और वह पूज्य से भोज्य बन गयी. एक प्रकार से वह रानी से नौकरानी बन गयी.  बल विवाह, पर्दा प्रथा, अनमोल-विवाह, बहु-विवाह, उत्तराधिकार-शून्यता, शिक्षा का आभाव आदि ने उसे महत्वहीन बना दिया.

आधुनिक को प्राप्त का युग है.  नारी भी जाग उठी है.  वह अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए जाग उठी.  कवियों ने उनका पक्ष लिया.  पन्त जी ने कहा -

'मुक्त करो नारी को मानव, चिर बंदिनी नारी को
युग-युग की निर्मम कार से, जननि, सखी प्यारी को.'

नारी अपनी स्थिति से अवगत हो गयी है.  वह आज पुरुष से हर क्षेत्र में होड़ लेने लगी.  कुछ हद तक यह ठीक नहीं है.  अब सभी यह अनुभव करने लगे है कि नारी फिर से अपने सच्चे आदर्शो पर आ जाय और समाज में उसे वही महत्वपूर्ण प्राचीन स्थान सुलभ हो जाय.  वह पुनः प्रतिष्टित पद पर आसीन ह जाय.  हिंदी के यशस्वी कवी श्री जयशंकर प्रसाद जी ने नारी सम्बन्ध में क्या ही उचित कहा है -

'नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में'

वास्तव में भारतीयों के लिए स्त्री पृथ्वी की कल्पलता है.  भारतीय समाज में नारी पुरुषों के लिए तथा पुरुष नारी के लिए सर्वस्व त्याग करने के लिए तत्पर है.  यही त्याग की भावना दोनों के जीवन को सुखमय बनती है.  वह करुणा, दया, प्रेम आदि मानवीय गुणों की देवी है.  वह समाज की मार्गादार्शिक भी है.  वास्तव में भारतीय समाज में  उसका स्थान अनुपम है.

No comments

Login to post a comment

Show
  • Create an account
  • Forgot your username?
  • Forgot your password?

Related Articles

  • ब्रम्ह्चर्यम परम बलम
  • कहानी: सपनों का घर
  • About Us
  • Faqs
  • Contact Us
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions