Open Means Open Means

आज सुबह सुबह रोज़ की भांति मै सोया हुआ था की उसी समय एक हृदयविदारक चीख मेरे कानो के सारे दरवाज़े खोलती हुई सीधे मेरे दिमाग मे पहुंची,उसी वक़त मै अपने सपनो की पालकी को छोड़ कर इस भांति खड़ा हो गया जैसे हजारों साँप वो बिच्छू ने मुझे एक साथ अपना निवाला बनाने की कोशिश की हो.फटाफट आननफानन मे अपने कपडे पहने और इस प्रकार दरवाज़े की और झपटा जैसे की अगर तुरंत कमरे से बहार ना निकला तो सम्पूर्ण कमरे के साथ ही इस धरती माँ की गोद मे समां जाऊंगा. कमरे से बहार निकलने की इस प्रक्रिया मे कुर्सी के एक कोने से टकराकर गिरते गिरते बचा, परंतू मुझे उस वक़त टकराने की चिंता नहीं थी ,मुझे तो किसी महान जासूस  की भांति इस कारन का पता लगाना था की ये हृदाविदारक  चीख आखिर  कहाँ से  और क्यों आ रही है .जैसे ही बहार निकला तो सामना हमारे महोल्ले के शर्मा जी से हुआ , उनसे कुछ पूछना चाहा परन्तु वो भी इस प्रकार  जल्दी मै थे की कही अगर थोड़ी सी भी देर हो गयी तो वो इस धरती मै अकेले ही रह जायेंगे.मैं भी किसी भेड़ के  बच्चे के माफिक उनके पीछे पीछे हो लिया. चलते चलते मैंने  आखिर उनसे पूछ ही लिया क्या हुआ शर्मा जी ये रोने की आवाज़ कैसी आ रही है , तो इस बात पर उन्होंने मुझे इस प्रकार घूरा मानो की मैंने उनसे उनके बेटी का हाथ अपने लिए मांग लिया हो . फिर भी उन्होंने एहसान करते हुए मुझसे अपनी भारी सी आवाज़ मै कहा मुझे भी कुछ नहीं पता है अभी , इसके आगे मैंने भी कुछ नहीं पुछा और थोड़ी देर मै हम दोनों ही उस घर के सामने पहुँच गए जिस घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थी . 

                           घर के सामने काफी भीड़ जमा हुई थी ये सभी लोग हमारे ही मोहल्ले के हैं ,मन ही मन  मैंने सोचा ,कुछ एक को तो मै पहचानता था  पर काफी लोग ऐसे भी थे जो मेरे लिए नए थे , भीड़ मै से ही एक आदमी से शर्माजी ने अपनी भारी भरकम आवाज़ मै पुछा भाईसाब क्या हुआ , तो  पता चला की हमारे मोहल्ले के तिवारीजी के बेटे  टिंकू ने आत्महत्या कर ली है .सुनते ही ऐसा लगा मानो  कानो मै जैसे हजारों घंटिय एक साथ बजा दी हो किसी ने , दिमाग मै सिर्फ किसी तेज़ हवा के बहने की आवाज़ सुनाई दे रही थी , इस मनोस्थिथि मै  और शर्माजी के मूंह  से आकास्मक एक ही शब्द निकला क्या !

 कानो पे भरोसा नहीं हो रह था परन्तु  जब टिंकू की माँ को अपने लाडले बेटे के स्थिर पड़े हुए बदन से लिपट के रोते और चीखते  हुए सुना तो ऐसा लगा मानो उनकी वो आवाज़ गरम शीशे की भांति मेरे कानो को फोड़ते हुए अन्दर समां रही है .किनारे पे खड़े हुए तिवारी जी तो एकदम बदहवास से थे , कुछ लोगो ने उन्हें संभाला हुआ था , आँखों से आंसू  इस प्रकार नीचे गिर रहे  थे मानो बरसात के मौसम मै  पहाड़ से झरना ,परन्तु वो झरना देख कर   मन को एक आनंद की प्राप्ति होती है अपितु इस झरने को देख कर मन ही मूह से बहार निकलने को व्याकुल हो गया.समझ मै नहीं आ रहा था की इतनी छोटी सी उम्र मै ऐसा भयानक कदम उठाने  की इस किशोरे को क्या आवश्यकता पड़ी. थोडा जानने की कोशिश  करी तो पता चला की कल टिंकू के  हाईस्कूल का रिजल्ट था और टिंकू उसमे फेल हो गया था  जिस कारन उसने अपनी जान ही दे दी .

                              टिंकू के अन्तिम्संस्कर ख़तम होने के बाद थका हुआ और बुझा हुआ सा घर पहुंचा , मेरी सोच टिंकू से हट ही नहीं रही थी ,वो मासूम  सा बच्चा ,जिसने ना जाने अभी कितनी दिवाली और देखनी थी , जिसने ना जाने कितने दिए और जलाने थे ,आज खुद की जिंदगी का दिया बुझा के हमेशा के लिए इस सांसारिक मोह माया से दूर चला गया है. परन्तु मेरे मन मे रह रह के एक सवाल किसी भीष्मकाय सर्प के फ़न की भांति  उठ रहा था , की क्या ये बस हमारे मोहल्ले के तिवारी जी के घर की ही कहानी है , आज के इस समय मै रोज़ हजारों मासूम अपने प्राणों की आहुति दे रहे ,क्या आज हमारी शिक्षा प्रणाली  इतनी भयानक हो गयी है की मासूम कलेजे उसे सह नहीं पा रहे है , क्या आज सरस्वती कही जाने वाली ये शिक्षा   एक दानव बन गयी है जिसने हजारों लाखो टिंकू की जाने ले ली है. आखिर क्या फायदा ऐसी शिक्षा का जो की किसी  बच्चे की ज़िन्दगी बनाने की जगह उसकी ज़िन्दगी ही छीन ले. हम कहते है हमारे देश का भविष्य बच्चो के हाथ मै है , इन बच्चो के कंधो पर ही हमारे राष्ट्र का भार टिका हुआ है. परन्तु उसके एवज मै हम इन बच्चो को क्या देते हैं , हाथ मै छड़ी और कंधे मै १०० मन गेंहू की बोरी के जितना बस्ता . अब समय आ गया है की हम समझे  की आखिर हमारी शिक्षा  प्रणआरी  मै कहा गलती है , कहा हमसे चूक हो रही है. शिक्षा के नाम पे हमे इन बचो को शिक्षा ही देनी चाहिए ना की किसी राशन की दुकान की बोरियों जैसा बस्ता. हमे  एक माहोल बनाना चाहिए  जिसमे  हर बच्चा अपनी पसंद के हिस्साब से अपने भविष्य की सरचना करे , ना की किसी दबाव मै आकर .

                                  कहते है किसी भी बचे की प्रारंभिक शिक्षा उसके घर से शुरू होती है , उसके माँ बाप ही उसके सिखने का स्रोअत होते है .परन्तु आजकल की इस पैसे कमाओ वाली लाइफ मै माँ और बाप दोनों ही सिर्फ एक पैसे कमाने की मशीन बन के रह गए है . उनके पास इतना समय नहीं है की अपने बच्चे के ऊपर उसे खर्च कर सके. वो ये क्यों भूल जाते है की जिस बच्चे के भविष्य  के लिए वो ये पैसा कमा रहे है , अगर वो ही उनका लाल  किसी दिन ज़हर खा के नीला हो जाये  तो क्या मतलब इस सब धन का . माँ बाप को अपने बच्चो को प्यार के साथ साथ समय भी देना चाहिए ,  बच्चे के हर जाने पर उसे दुत्कारने की जगह उसे प्रोत्साहित करना चैये. उन्हें ये समझाना चाहिए की सिर्फ एक परीक्षा मै हारने से  कुछ नहीं होता है, क्योंकि इन परीक्षाओं से तुम्हारे जीवन मै बस कुछ समय के  लिए विराम लगा है , परन्तु  असली जीवन मै तुम्हे बहुत कुछ करना है. तुम्हारे अंदर बहुत क़ाबलियत है जो की इन परीक्षाओं से कही ऊपर है. अगर हमारे देश के हर एक परिवार के माता पिता की यह सोच जिस दिन हो जाएगी ,उस दिन से  कभी कोई  भी परिवार तिवारी जी की तरह नहीं तडपेगा . अगर  समय रहते  हम इस बात को नहीं समझे तो वो दिन दूर नहीं जब हमे इन आत्महत्याओं को हत्या का नाम देना पड़ेगा.

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