दिल से दिल जब मिले. ... तो समझो होली है |
खिले प्रेम के फूल ......... तो समझो होली है |
'रंग' मेरा रंगीला मन है, जिसके ऊपर आये
मिटे जांति-धर्म का भेद, सब अपना ही हो जाये
बिछुडों से मिले तार . तो समझो होली है |
प्यार की पड़े' फुहार'.... तो समझो होली है |
चाचा-ताऊ, भाई-साथी, उड़ाए अबीर- गुलाल
लपटे-झपटे एक दूजे पर, कर दे सबको लाल
हिल मिल खेले 'परिवार' , तो समझो होली है |
नैना हो दो-चार... तो समझो होली है |
दगा-फरेब,होनी-अनहोनी ,सब छोडो मेरे भाई
गिला-शिकवा, दुःख-दर्द मिटाने ,आई 'होली' आई
बीती बात 'बिसार ' तो समझो होली है |
दुश्मन खड़ा हो द्वार...तो समझो होली है |
कोई घात लगाकर घूमे,करने को मुंह काला
पास-पड़ोस भौजी संग 'रंग' खेले हिम्मतवाला
घरवाली से हो तकरार तो समझो होली है |
'साली' पर छलके प्यार...तो समझो होली है |
ढोल-नगाड़े पर सब झूमे गाये होली गीत
गुझिया,ठंडई भाँग खिलाकर जोड़े गहरी प्रीत
गूंगा भी करे गुहार तो समझो होली है |
न उतरे फागुन का 'बुखार' ...तो समझो होली है |
-ऋषि कान्त उपाध्याय