Open Means Open Means
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकृति बहुत निराली  है . हमारी प्रकृति इतनी सुन्दर है कि सचमुच इसे पूजने का मन करता है. ये सारी दुनिया ! ये परबत, ये नदी नाले, झरने, ऊंचे ऊंचे विशाल पेड़ों का जंगल, चारों ओर चहचहाते पंछी और ये विशाल खुला गगन. आखिर ये सब कहाँ  से  आये  हैं ? क्या प्रकृति का ये चमत्कृत कर देने वाला मंज़र देखकर दिल में कहीं ये विचार पनपता है कि इसे भी किसी ने बनाया है, जैसे कि हम इंसानों को किसी ने रचा है. या फिर ये विचार आता है कि इस प्रकृति ने हमें पैदा किया है! हम इन्सान इस दुनिया के सर्वश्रेष्ट प्राणी हैं, जिसमे सोचने, समझने और करने की अद्भुत क्षमता है. अपनी इसी बुद्धि का उपयोग कर हम अच्छी तरह समझ सकते हैं कि इस सुन्दर प्रकृति ने हमें नहीं बनाया; बल्कि इस प्रकृति को भी उसी ने पैदा किया है जिसने इंसानों को इस धरती पर भेजा है. इन्सान के अन्दर ऐसी शक्ति छुपी हुयी है कि उसे बड़ी अच्छी तरह इस बात का पता चल जाता है कि सच्चाई क्या है और क्या नहीं. आपने खुद महसूस किया होगा कि एक स्वाभाविक न्याय की भावना हमारे अन्दर कूट कूट कर भरी है, कहीं किसी के साथ कुछ गलत होता हुआ अगर हम देखते हैं तो हमारा मन व्याकुल हो जाता है.  हमारा मन न्याय के लिए तड़पने लगता है. ऐसा क्यों है? क्या आप जानना नहीं चाहेंगे? मित्रों, ऐसा इसलिए है कि हम सबका ईश्वर, जो एक है, उसने इन्सान और प्रकृति को ही नहीं बल्कि जो कुछ हमें नज़र आता है और जो हमारी नज़रों से ओझल है, और जिसके बारे में अभी हमें काफी कुछ जानना बाकी है, उसने हमें बनाया है. प्रकृति को ईश्वर ने हमारे लिए ही बनाया है. अब ये बात सही लगती है कि हमें उसको पूजना चाहिए जिसने सबको बनाया है. प्रकृति तो बस हमारी ही तरह है. एक सुन्दर रचना ना कि रचयता. ये पल पल बदलता मौसम, ये हवाएं, ये सुन्दर सुन्दर मंत्रमुग्ध कर देने वाले फूल, वो चमकीले बर्फीले पहाड़, और भी बहुत कुछ, जो  की  सचमुच हमारे शब्दों की पकड़ से भी बाहर हैं. ये सब तो केवल सुन्दर निशानियाँ हैं, जो हमें पल पल हर पल याद दिलाती रहती हैं कि ईश्वर एक है. हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए कि वह हमें कितना कुछ प्रदान करती है. निः स्वार्थ और ममतामयी. बिना किसी भेद भाव के प्रकृति हमें जीने की प्रेरणा देती है. प्रकृति के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. एक सच्चा और अच्चा इन्सान वो है जो ईश्वर का धन्यवाद हमेशा करता रहे कि ईश्वर ने उसे इस धरती पर भेजकर कितना बड़ा एहसान किया है. अब्दुल बशीर .

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