-------o कथा की भूमिका o-------
बात राजा विक्रमादित्य के युग की है I क्या आप कहना चाहते हैं कि राजा विक्रमादित्य को नहीं जानते ? तो आइए मैं आपको सम्पूर्ण कथा सुनाता हूँ, परम गुणवान, चरित्रवान एवं पराक्रमी, राजाओं के राजा, चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य की कथा I
यह 'सिंहासन बत्तीसी' नामक एक महान कथा संग्रह है जिसमें कुल ३२ कथाएँ हैं I ये ३२ कथाएँ महाराज विक्रमादित्य के राजसिंहासन में स्थापित ३२ पुतलिओं द्वारा कही गईं हैं I ये ३२ पुतलियाँ महाराज विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का वर्णन ३२ कथाओं के रूप में करती हैं I
ये कथाएँ अत्यंत प्राचीन हैं I एसा कहा जाता है कि 'सिंहासन बत्तीसी' की रचना सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में हुई थी I इसे 'सिंहासनद्वात्रिंशति', 'द्वात्रींशत्पुत्तलिका' तथा 'विक्रमचरित' के नाम से भी जाना जाता है I यद्यपि इन कथाओं के रचनाकाल के विषय कें कोई ठोस तथ्य उपलब्ध नहीं है, ऐसा माना जाता है कि इनकी रचना ११वीं सदी के पश्चात ही हुई है I
महाराजा विक्रमादित्य एक प्रजापालक, लोकप्रिय, दूरदर्शी तथा अत्यंत महान शाशक के रूप में सदा ही भारत देश की लोककथाओं के बहुचर्चित पात्र रहे हैं I विक्रमादित्य की कथाओं का अनुवाद समय-समय पर विभिन्न भारतीय भाषाओं में होता रहा है तथा ये कथाएँ भगवान राम एवं कृष्ण की पौराणिक कथाओं की भाँति ही भारतीय समाज की रग-रग में रची-बसी हुई हैं I हम सब ने कभी न कभी विक्रम की कथाएँ अवश्य ही सुनी है I
'सिंहासन बत्तीसी' की कथा का आरम्भ इस प्रकार होता है I परमार वंश के नवें राजा, भोजराज मालवा राज्य की राजधानी धारानगरी से अपना राज्यसंचालन करते थे I 'सिंहासन बत्तीसी' की ३२ कथाएँ ३२ पुतलिओं के मुख से भोजराज को सुनाई गई हैंI ये ३२ पुतलियाँ एक स्वर्ण सिंहासन में स्थापित थीं जो महाराज विक्रमादित्य का था I यह स्वर्ण सिंहासन जिन परिस्थितिओं में भोजराज को प्राप्त हुआ, वह भी अपने आप में एक कथा है I
एक दिन भोजराज को एक साधारण से चरवाहे के विषय में ज्ञात होता है, जो अपनी असाधारण न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्द था I यह चरवाहा पूर्णतया निरक्षर था और उसकी कई पुश्तें मालवा राज्य में ही कुम्हारों की गायें-बकरियाँ चराती आ रही थीं I भोजराज के गुप्तचरों ने उन्हें यह सूचना दी कि वह चरवाहा अपना सारा न्याय एक टीले पर चढ़कर करता है I भोजराज को यह विषय अत्यंत जटिल प्रतीत हुआ और जिज्ञासावश उन्होंने स्वयं ही अपना भेष बदलकर सत्य का पता लगाने का निश्चय किया I वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ चरवाहा बैठकर न्याय कर रहा था I उन्होंने देखा कि विषय अत्यंत जटिल था और चरवाहे का न्याय अत्यंत ही महान I उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ मानो वहाँ चरवाहा नहीं कोई तेजस्वी राजा अपना न्याय सुना रहा है I भोजराज चरवाहे के न्याय तथा आत्मविश्वास से अत्यंत प्रभावित हुए और उसकी इस अतुलनीय क्षमता के विषय में जानना चाहा तो चन्द्रभान नामक उस चरवाहे ने उन्हें बताया कि न्याय करने की यह अद्भुत शक्ति टीले पर बैठने पर उसमे अनायास ही आ जाती है I
भोजराज ने बहुत सोच-विचार कर यह निश्चय किया कि उस टीले को खुदवाकर यह देखा जाए कि उसके गर्भ में ऐसा क्या छुपा है जिसकी शक्ति से एक साधारण चरवाहा असाधारण न्याय करने में सक्षम हुआ I जब खुदाई की गयी तो टीले के गर्भ से एक राजसिंहासन प्राप्त हुआ I यह राजसिंहासन कला का अति अद्भुत रूप था I वह पूरा स्वर्ण का बना हुआ था, उसमें ३२ पुतलियाँ स्थापित थीं तथा मूल्यवान रत्न भी जड़े थे I सिंहासन पर जमी धुल-मिट्टी को जब साफ़ किया गया, उसकी अलौकिक सुन्दरता देखते ही बनती थी I उसे जब भोजराज के दरबार में लाया गया, देखने वालों की आँखें खुली की खुली रह गयीं I लग रहा था मानो वह स्वर्ग के राजा इन्द्र का राजसिंहासन हो I
भोजराज ने शुभ मुहूर्त देखकर उस सिंहासन पर बैठना निश्चित किया I जैसे ही उन्होंने उस सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया, उसमे स्थापित ३२ पुतलियाँ उनपर खिलखिलाकर हँस पड़ीं मानो किसी ने उनमे प्राण वायु फूँक दिए हों I पुतलियाँ हँस-हँस कर भोजराज का उपहास करने लगीं I आश्चर्यचकित भोजराज ने जब उनसे उस उपहास का कारण पुछा, तो पुतलियाँ बोल उठीं, "हे राजन, जिस सिंहासन पर तुम बैठने का प्रयत्न कर रहे हो वह परम गुणवान, चरित्रवान एवं पराक्रमी, राजाओं के राजा, चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य का राजसिंहासन है I इस पर बैठने वाला महाराज विक्रमादित्य की ही भाँति योग्य, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए I वह प्रजापालक, लोकप्रिय एवं दूरदर्शी होना चाहिए I केवल वही मनुष्य इस राजसिंहासन का उत्तराधिकारी बन सकता है जिसमे ये सारे गुण हों I क्या तुममे ये सारे गुण हैं ?" यह सुनकर भोजराज चिंतामग्न हो गए और सिंहासन पर स्थापित ३२ पुतलियाँ एक-एक कर राजा विक्रमादित्य की कथाएँ सुनाने लगीं I
सिंहासन पर स्थापित उन ३२ पुतलिओं के नामों का क्रम इस प्रकार है - रत्नमंजरी, चित्रलेखा, चन्द्रकला, अनुरोधवती, कामकंदला, लीलावती, रविभामा, कौमुदी, पुष्पवती, मधुमालती, प्रभावती, त्रिलोचना, पद्मावती, कीर्तिमती, सुनयना, सुन्दरवती, सत्यवती, विद्यावती, तारावती, रुपरेखा, ज्ञानवती, चन्द्रज्योति, धर्मवती, करुणावती, त्रिनेत्री, मृगनयनी, मलयवती, वैदेही, मानवती, जयलक्ष्मी, कौशल्या तथा रानी रुपवती I
सिंहासन बत्तीसी की इन कथाओं में विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का वर्णन था I पुतलियों ने कहा कि ये सारे गुण एक आदर्श राजा में होने आवश्यक हैं I विक्रामादित्य को माता भद्रकाली का वरदान प्राप्त था I कालांतर में विक्रामादित्य माता भद्रकाली के वरदान अनुसार अत्यंत गुणवान, चरित्रवान एवं पराक्रमी चक्रवर्ती राजा बने और उनका कीर्ति-ध्वज सर्वत्र लहरा उठा .
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