विवाह प्रथा आज सारे संसार मे प्रचलित है . प्राचीन समय मे तो विवाह कई तरीके से होते थे ,लेकिन वर्त्तमान युग मई परंपरागत विवाह और प्रेम विवाह दो ही अधिक प्रचलित हाउ. विवाह के बाद लड़के और लड़की को पति और पत्नी के नाम से पुकारा जाता है.पति को अंग्रेजी मे husband कहते हैं जिसका मतलब होता है घर का स्वामी .विवाह के बाद प्रत्येक व्यक्ति पति के नाम से पुकारा जाता है. क्या आप जानते है की पति पत्नी के रिश्ते की शुरुवात कैसे हुई ?
विवाह का इतिहास बहुत पुराना है . अब तक यह विवाह तीन स्थितियों से गुजर चुका है ,एक समय था , शादियाँ शक्ति के बल पर होती थी. आदमी को जो लड़की पसंद होती थी ,उसे वोह चुराकर या ताकत के बल पर ले आता था ,इसके बाद उसे अपनी पत्नी बना लेता था .रजा महाराजाओं मे स्वयंवर की प्रथा प्रचलित थी .स्वयंवर मे लड़की का पिता कोई भी कठिन कार्य करने को कहता था , जो भी व्यक्ति उस कार्य को पूरा कर देता था ,लड़की उसके गले मे ही वरमाला डालती थी. सीता स्वयंवर इसी प्रकार के विवाह का एक उदहारण है. इसके बाद एक समय ऐसा आया ,जब दुसरे प्रकार की शादियों की शुरुवात हुई. इस तरीके के अंतर्गत आदमी लड़की वालो को धन देकर लड़की खरीद लेते थे और खरीदी हुई लड़की उस आदमी की पत्नी हो जाती थी. इसके बाद शादियों का तीसरा तरीका लोकप्रिय हुआ .इसके अंतर्गत लड़की वाले लड़के वालो के यहाँ विवाह तय करने जाने लगे . शादियों का यह तरीका आज भी अपने देश मे प्रचलित है .इसके अतिरिक्त कुछ लड़के लड़कियों के परस्पर प्रेम के फलस्वरूप भी शादियाँ होने लगी हैं.
विवाह वास्तव मे एक ऐसा सामाजिक बंधन है , जो नारी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है . संसार के अलग- अलग देशों मे विभिन्न रीतियों से शादियाँ की जाती हैं. उदहारण के लिए ईसाई गिरिजाघर मे अपनी विवाह रस्म पूर्ण करते है . हिन्दुओ मे अग्नि को साक्षी मानकर शादी की रस्म पूरी की जाती है . परिणय-पर्व पर दूल्हा दुल्हन एक दुसरे को अँगूठिया पहनाते हैं .यह इस बात का सूचक है की हमे सम्पूर्ण जीवन स्नेहपूर्वक मिलजुलकर बीतना है .यहाँ एक मांगलिक भावना एवं दार्शनिक तथ्य भी निहित है . वह यह की अंगूठी वृताकार होती है और वृताकार पूर्णता का घोतक होता है .
शादी के बाद पति पत्नी एक दुसरे के जीवनसाथी बन जाते हैं. सच्चे अर्थो मे कर्तव्य और जिमेदारी व्यक्ति शादी के बाद ही सीखता है.