एक टुकडा उस चाँद का
जिसे देख कर रुके थे हम
एक बूँद उस बारिश की
जिसमे घुल गए थे सारे गम
एक झलक उस घर की
जहाँ ठहरने की जिद की थी
एक पंखुडी उस फूल की
जिसने दी तुम्हे हंसी थी
थोडी तपिश उस धूप की
जिसमे कदम रुके थे
और थोड़े से बिखरे वो पल
जो साथ में बुने थे
कहीं भूल न जाऊं लम्हे ये
और याद रखूं उन वादों को
इसीलिए चुन रहा हूँ बातें सब
और सहेज रहा हूँ यादों को
कुछ दर्द उस चोट का
जो झूले पर लगी थी
कुछ कांटे उस शाख के
जो नदी किनारे पड़ी थी
दो कंकड़ उस सड़क के
जिनसे तुम्हे सताता था
और कुछ शब्द उस गीत के
जो बेसुरा मै गाता था
वो मिर्च तेज़ , वो मीठी दाल
जिसे साथ में हमने खाया था
और वो टोपी आडी तिरछी सी
जिसे पहन मै छुप के आया था
कहीं भूल न जाऊं लम्हे ये
और याद रखूं उन वादों को
इसीलिए चुन रहा हूँ बातें सब
और सहेज रहा हूँ यादों को